साथ कुछ नहीं जाता
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
इस जग की यह रीति पुरानी,
खाली हाथ ही सबकी कहानी।
आए अकेले, जाएँ अकेले,
क्या लाए थे जो साथ ले चलें?
धन, दौलत, वैभव की माया,
क्षण भंगुर है, यह जग छाया।
मान और अपमान के पल ये,
क्यों इनमें उलझे मन बावरे?
हार और जीत तो खेल है जीवन का,
सुख-दुख है साथी हर क्षण का।
जो मन समता में रम जाता है,
हर स्थिति में शांति पाता है।
न कुछ अपना, न कुछ पराया,
सब मिट्टी का यह तन काया।
यह ज्ञान ही देता है शक्ति,
हर द्वंद्व से लड़ने की भक्ति।
इसलिए मन को स्थिर कर ले,
हर भाव में समता धर ले।
यही जीवन का सार है सच्चा,
साथ नहीं जाता कुछ भी अच्छा।