हज़ार सौदों के बाद भी, दिरहम कुछ कम पड़ गए..
वो जुबां के ज़ख्म थे, तभी मरहम कुछ कम पड़ गए..।
ताउम्र खुदा ने कभी, कम न की थी दुश्वारियां अपनी..
इस कदर मिली, कि उसके पेचो–ख़म कम पड़ गए..।
उनसे हमारी मुहब्बत, आख़िर इकतरफा ही रह गई..
हम तो उम्र भर चले मगर, चार–कदम कम पड़ गए..।
उनकी फ़ुरकत पे जो, हमारी चश्म–ए–तर न थी..
वो सोचते हैं, क्या अब भी कुछ सितम कम पड़ गए..।
फूलों के कुछ रंग, हमारे मुताबिक़ भी खिलते कभी..
कुछ बहारों को ग़र्ज़ न थी, कुछ मौसम कम पड़ गए..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




