कापीराइट गजल
बाजार से गुजरे हम
दर्द के दिलकश बाजार से गुजरे हम
यूं इश्क के नए कारबार से गुजरे हम
उठ, रही थी हर नजर, हमारी ही तरफ
निगाहों के एक नए करार से गुजरे हम
बुझी-बुझी सी लग रही थी वो हंसीं आंखें
यूं हुस्न के गजब बाजार से गुजरे हम
वो, बेबस सी निगाहें, कुछ बेहाल सी थी
उन्हीं, निगाहों के मनुहार से, गुजरे हम
था, कुछ पाने और कुछ, खोने का गम
यूं किसी के अधूरे से प्यार से गुजरे हम
दिख रही थी उन आंखों में लाचारी हमें
उन की, आशा के खुमार से, गुजरे हम
यह, सौदागर इश्क के, बैठे हैं हर गली में
उनकी आंखों के हर वार से गुजरे हम
जिस्म बेचने से ही है अब मतलब उनको
यूं किसी बेवफा के प्यार से गुजरे हम
जहां टूटता है यूं किसी का, भरोसा यादव
एक, ऐसे अनोखे बाजार, से गुजरे हम
लेखराम यादव
(मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है