कुछ कुछ होता है।।
हमें कुछ पता होता ही नहीं,
फिर भी हम कुछ कुछ पता करते हैं,
जो कुछ पता होता है,
वो औरों के कुछ कुछ से पता होता है,
उनका कुछ पता नहीं होता,
वो कुछ तो कुछ करता है,
कुछ करता है तो कुछ ही अनुभव होता है,
और कुछ के चक्कर में,
उसकी सांसें ही कुछ रह जाती है,
फिर उन सांसों में कुछ रह जाता है,
फिर वो कुछ भी रह जाता है,
फिर कुछ नहीं रहता है,
फिर कुछ सवाल,
फिर कुछ जवाब,
फिर कुछ हम उस बचे कुछ से पता करते हैं,
वही कुछ हमें पता होता है,
फिर उस कुछ के सहारे हम कुछ करते हैं,
फिर हमें कुछ-कुछ होता है,
फिर कुछ ही हमें पता होता है,
कुछ ही अनुभव मिलता है,
फिर कुछ हमारे भीतर होता है,
फिर कुछ बाहर हम करते हैं,
फिर कुछ-कुछ यूं जिंदगी चलती है,
कुछ दिन तन्हा, कुछ दिन साथ,
कुछ दिन बात, कुछ दिन मुलाकात,
कुछ दिन जज़्बात, कुछ दिन घात
कुछ दिन बीता कर,
कुछ रातों में ही,
कुछ हमारा शोर और कुछ मौन,
सब कुछ, कुछ में सिमट जाता है,
फिर कुछ ही याद करते हैं,
कुछ भूल जाते हैं,
फिर कुछ करके,
कुछ इस जहां से,
कुछ दिन ठहर कर यूं,
कुछ क़यामत को ले,
कुछ ही सबकुछ में समा जाता है।।
- ललित दाधीच