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कविता की खुँटी

                    

गुरुदत्त के साइन करने पर लोगों ने कैफ़ी को गीतकार माना

Mar 12, 2024 | खेल जगत - न्यूज़ - सामाजिक एवं राजनितिक | लिखन्तु - ऑफिसियल  |  👁 126,343


एक इंटरव्यू के दौरान कैफ़ी बताते हैं कि कैसे लोगों ने उन्हें गीतकार तब माना जब उन्होंने गुरुदत्त की फ़िल्म साइन की।

कैफ़ी आज़मी उर्दू अदब का एक मक़बूल नाम हैं जिन्होंने अपनी ग़ज़लों में रूमानियत से लेकर औरतों के हक़ों तक को लिखा। लेकिन उनके लेखन का सफ़र इतना आसान नहीं था। सादे से कपड़े पहनने वाले शायर कैफ़ी ने अपने शुरुआती दौर में बहुत बेकारी के दिन देखे थे। उनका जन्म एक छोटे से गांव मिजवां में हुआ था जहां न पानी था न बिजली।

कैफ़ी उसी गांव से निकले और अदब की तरफ़ रुख किया। वह ‘कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया’ के सदस्य बन गए, जिससे उन्हें कुछ पैसे मिल जाया करते थे। इसी बीच इन्हें शौक़त से मुहब्बत हो गयी। कैफ़ी की बेग़म शौक़त बताती हैं कि उन्हें कैफ़ी की आवाज़ और उनकी शायरी से प्यार हो गया था और उन्होंने उनसे शादी करने की बात तय कर ली। लेकिन उनके परिवार ने इसका विरोध किया क्यूंकि कैफ़ी उस वक़्त बहुत कम कमाया करते थे। लेकिन शौक़त ने कहा कि अगर उन्हें कैफ़ी के साथ मजदूरी भी करनी पड़ी तो वह करेंगी लेकिन वह कैफ़ी से ही शादी करेंगी।

शादी के बाद शौक़त ने डबिंग और गायन से घर के खर्च चलाने में मदद की। इसी तारीफ़ में कैफ़ी कहते हैं कि, “अगर कोई और बीबी होती तो कम अज़ कम उनकी कम्यूनिस्ट पार्टी तो छुड़वा ही देती लेकिन शौकत ने उनकी हर तरह से मदद की।”

अपने अब्बा को याद करते हुए शबाना कहती हैं कि, “उन्हें इस बात का एहसास था कि उनके अब्बा दूसरों से अलग हैं।” शबाना बताती हैं कि पहले जब वह कैफ़ी को घर में शायरी करते देखती थीं तो समझती थीं कि शायर यही होते हैं जो कोई बिजनेस नहीं करते, बस घर में बैठकर लिखते रहते हैं। लेकिन जब उनकी सहेलियों ने कैफ़ी का नाम अख़बार में दिखाया तो उन्हें पता चला कि उनके अब्बा दूसरों से कितने अलग हैं। तब वह इस बात पर बड़ा गर्व करती थीं।

इंटरव्यू में इसी बातचीत के दौरान कैफ़ी बताते हैं कि, ‘लोगों ने उन्हें तब गीतकार माना जब गुरुदत्त ने उन्हें साइन किया। क्यूंकि गुरुदत्त का नाम बहुत बड़ा था। लेकिन वह फ़िल्म फ्लॉप हो गयी और लोगों को लगा कि कैफ़ी लिखते तो अच्छा हैं लेकिन उनके तारे अच्छे नहीं हैं और लोगों ने उन्हें काम देना बंद कर दिया। इसके बाद चेतन फ़िल्म हक़ीक़त लेकर आए और उन्होंने कैफ़ी साहब को साइन किया। फ़िल्म सुपरहिट गयी और लोग तारों जैसी सारी बातें भूल गए।

यह लेख काव्य डेस्क - अमरउजाला से लिया गया है।




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