ज़ेहन की गहराई: अचेतन का सफ़र
न मैं हूँ यहां न वो ख़्वाब जो तुझसे कहा रहा है, ये कौन है जो अंधेरे में ख़ुद को सजा रहा है।
वो बात जो कभी न कही, वो नज़र से गुज़रती नहीं, मगर तमाम उम्र मेरा ज़मीर गुनगुना रहा है।
मुझे मालूम नहीं वो ख़ुशी थी या सिर्फ़ एक धोखा, ये कौन सा इश्क़ है जो हर रोज़ बेवफ़ा हो रहा है।
यहाँ हर ग़लती का सबब गहराई में छिपा था कहीं, दिमाग़ तो तर्क देता है, दिल मगर गुनाह सह रहा है।
मैं सोचता हूँ कि मैं कौन हूँ, और ये भी सोचता हूँ, ये सोच भी किस की है, जो मुझमें क़ायम रहा है।
कभी लगता है कि सब याद है, कभी सब गुम सा हुआ, वो वक़्त जो बीत चुका, वो आज भी यहीं खड़ा रहा है।
वो अधूरा ख्वाब जो पूरा होने से पहले टूट गया, वो ज़रूरी नहीं था, बस ज़ेहन में ज़िंदा रहा है।
कोई दरवाज़ा तो है मुझमें जो खुलने से डरता है, मैं बाहर देखता रहा, वो अंदर से दस्तक दे रहा है।
- ललित दाधीच।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




