शाम से पहले पहले जाम मिल जाता तो बेहतर था
तेरे दीवानों में नया ये नाम जुड़ जाता तो बेहतर था I
तिश्नगी लिए दर दर भटक रहे हैं मुद्द्त से ए साकी
महफ़िल का दावते पैगाम मिल जाता तो बेहतर था I
हम अभी तक पीने पिलाने के कायदे से अनजान हैं
सलीका ए जाम कोई जरा समझाता तो बेहतर था I
क्यूँ नक़ब में कैद हैं वो चाँद जो कभी छिपता नहीं
हुश्न का जलवा नया जाम बन जाता तो बेहतर था I
दास मय पीकर नशे में लड़खड़ाते हैं बहुत ज्यादा
साकी का शाना हमें भी मिल जाता तो बेहतर था II