खामोशी का तूफान
डॉ0 एच सी विपिन कुमार जैन" विख्यात"
सहता रहा जो अपमान, सम्मान की खातिर मौन रहा,
दुनिया ने समझा बुज़दिल उसे, हर पल उसको हीन कहा।
झेलता रहा वो तीखे व्यंग्य, चुपचाप पीता रहा ज़हर,
सोचा ना किसी ने उसके मन का, कितना गहरा था वो कहर।
मत समझो कमजोर किसी को, जो दर्द भीतर पाले है,
शांत सरोवर की गहराई में, तूफ़ान भी तो सोता है।
गर चुप्पी उसकी टूटी एक दिन, ज्वालामुखी सा फूटेगा,
क्रोध की ऐसी प्रचंड ज्वाला, हर बंधन को वो तोड़ेगा।
वो बुज़दिल नहीं, वो धैर्य की मूरत, सहता रहा जो सीमा तक,
मर्यादा की लक्ष्मण रेखा थी, उसकी खामोशी में अब तक।
पर जब आत्मसम्मान पर आई, गहरी चोट कोई देगा,
उस दिन उसकी दहाड़ सुनेगा, हर वो शख्स जो नीचा कहेगा।
इसलिए मत करो प्रहार ऐसा, जो अंतरतम को भेद जाए,
शांत स्वभाव का इंसान भी, रौद्र रूप जब दिखलाए।
खामोशी को कमजोरी मत जानो, यह सागर की गहराई है,
जिस दिन उठेगी लहरें बनकर, दुनिया भी थरथराएगी।