चला पथिक इन राहों पर
जीवन मरण की बाहों पर
बिता पिछला, पर अगला पड़ाव आ गया
चलते-चलते फिर तनाव आ गया
पथिक फिरता गहरे वनों में
ईश्वर बस्ता उसके मनो में
झुन्झने का इरादा पर जड़ाव आ गया
चलते-चलते फिर तनाव आ गया
तनाव भरे उदगार को
भारी मन को बेचैन किया
न जाने किस मिल का पत्थर
आ गया
चलते-चलते फिर तनाव आ गया
ये तनाव आत्मा को रोदता
यह तनाव शीत उष्ण को रोधता
ना जाने कब मरण की बाहों में
सैलाब आ गया चलते-चलते तनाव आ गया
वज्र से भयंकर
विस्पोटक से भी तेज
चल रहा राहो पर पथिक कर दिया उसे ओर तेज
चलते चलते फिर तनाव आ गया
इन अपूर्ण राहों का अगला पड़ाव आ गया
चलते-चलते फिर तनाव आ गया
----अशोक सुथार