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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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कविता की खुँटी

                    

टूटे खंजर बिखरे मंजर - अशोक कुमार पचौरी

जिसके सीने में दिल ना हो

उसको क्या मारोगे खंजर?

मेरी नजरें हैं गिरी हुई

मुझको क्या दिखलाना मंजर?

तुम जो मांगो मिले नहीं

ऐसा तो कभी भी हुआ नहीं

कुछ खास था पर कुछ खास नहीं

तुमको हो अगर एह्शाश नहीं

टूटे खंजर बिखरे मंजर

कुछ भी तो हमें राष नहीं

पास होकर भी तुम पास नहीं

तुमको हो अगर एह्शाश नहीं

यह जीना भी कोई जीना है?

घुट घुट कर विष को पीना है

तनहा रातें कड़वी बातें

मंजिल भी तो अब पास नहीं

कुछ अपना था पर कुछ ना था

एह्शानो में है दबे हुए

कितने वजनो को सहे हुए

कुछ कहना था पर कुछ भी नहीं

मंजिल ही नहीं रास्ता भी नहीं

बस कुछ वादों में उलझे हैं

ऐसे हैं कभी ना सुलझे हैं

उलझाना मेरा काम नहीं

पल पल तत्पर सुलझाने को

सुलझाना पर आसान नहीं

जो नहीं सुलझता जाने दो

पर फिर भी कोशिश जारी थी

बस कुछ नग्मे थे बचे हुए

हाँ तूने उनको तोड़ दिया

आगे जब जब बढ़ना था तुझे

तूने पीछे को मुंह मोड़ लिया

मैं बंजारा इन गलियों का

दिन रात मेरे अब बंजर हैं

कैसे देखूं ना दिखाई दे

अब धुंधले धुंधले मंजर हैं

कहीं जाने का भी मन ना है

हर हाथ मैं अब जो खंजर हैं

पर जिसके सीने में दिल ना हो

उसको तुम क्या मारोगे खंजर

मेरी नजरें हैं गिरी हुई

मुझको क्या दिखलाना मंजर?

Originally published at https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/ashok-pachaury-tutey-khanjar-bikharey-manjar


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Sunil Singh said

Bahut achha likha

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Shukriya Jaankar khushi huyi

कमलकांत घिरी said

वाह क्या खंजर तोड़े है आपने, बहुत ख़ूब महोदय👏👏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत बहुत आभार अच्छा लगा आपकी नज़रों के सामने मेरी छोटी सी रचना आयी और उस पर आपकी प्रतिक्रिया का आना सोने पर सुहागा धन्यवाद कांत सर

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