New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

टूटे खंजर बिखरे मंजर - अशोक कुमार पचौरी

जिसके सीने में दिल ना हो

उसको क्या मारोगे खंजर?

मेरी नजरें हैं गिरी हुई

मुझको क्या दिखलाना मंजर?

तुम जो मांगो मिले नहीं

ऐसा तो कभी भी हुआ नहीं

कुछ खास था पर कुछ खास नहीं

तुमको हो अगर एह्शाश नहीं

टूटे खंजर बिखरे मंजर

कुछ भी तो हमें राष नहीं

पास होकर भी तुम पास नहीं

तुमको हो अगर एह्शाश नहीं

यह जीना भी कोई जीना है?

घुट घुट कर विष को पीना है

तनहा रातें कड़वी बातें

मंजिल भी तो अब पास नहीं

कुछ अपना था पर कुछ ना था

एह्शानो में है दबे हुए

कितने वजनो को सहे हुए

कुछ कहना था पर कुछ भी नहीं

मंजिल ही नहीं रास्ता भी नहीं

बस कुछ वादों में उलझे हैं

ऐसे हैं कभी ना सुलझे हैं

उलझाना मेरा काम नहीं

पल पल तत्पर सुलझाने को

सुलझाना पर आसान नहीं

जो नहीं सुलझता जाने दो

पर फिर भी कोशिश जारी थी

बस कुछ नग्मे थे बचे हुए

हाँ तूने उनको तोड़ दिया

आगे जब जब बढ़ना था तुझे

तूने पीछे को मुंह मोड़ लिया

मैं बंजारा इन गलियों का

दिन रात मेरे अब बंजर हैं

कैसे देखूं ना दिखाई दे

अब धुंधले धुंधले मंजर हैं

कहीं जाने का भी मन ना है

हर हाथ मैं अब जो खंजर हैं

पर जिसके सीने में दिल ना हो

उसको तुम क्या मारोगे खंजर

मेरी नजरें हैं गिरी हुई

मुझको क्या दिखलाना मंजर?

Originally published at https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/ashok-pachaury-tutey-khanjar-bikharey-manjar




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Sunil Singh said

Bahut achha likha

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Shukriya Jaankar khushi huyi

कमलकांत घिरी said

वाह क्या खंजर तोड़े है आपने, बहुत ख़ूब महोदय👏👏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत बहुत आभार अच्छा लगा आपकी नज़रों के सामने मेरी छोटी सी रचना आयी और उस पर आपकी प्रतिक्रिया का आना सोने पर सुहागा धन्यवाद कांत सर

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन