जिसके सीने में दिल ना हो
उसको क्या मारोगे खंजर?
मेरी नजरें हैं गिरी हुई
मुझको क्या दिखलाना मंजर?
तुम जो मांगो मिले नहीं
ऐसा तो कभी भी हुआ नहीं
कुछ खास था पर कुछ खास नहीं
तुमको हो अगर एह्शाश नहीं
टूटे खंजर बिखरे मंजर
कुछ भी तो हमें राष नहीं
पास होकर भी तुम पास नहीं
तुमको हो अगर एह्शाश नहीं
यह जीना भी कोई जीना है?
घुट घुट कर विष को पीना है
तनहा रातें कड़वी बातें
मंजिल भी तो अब पास नहीं
कुछ अपना था पर कुछ ना था
एह्शानो में है दबे हुए
कितने वजनो को सहे हुए
कुछ कहना था पर कुछ भी नहीं
मंजिल ही नहीं रास्ता भी नहीं
बस कुछ वादों में उलझे हैं
ऐसे हैं कभी ना सुलझे हैं
उलझाना मेरा काम नहीं
पल पल तत्पर सुलझाने को
सुलझाना पर आसान नहीं
जो नहीं सुलझता जाने दो
पर फिर भी कोशिश जारी थी
बस कुछ नग्मे थे बचे हुए
हाँ तूने उनको तोड़ दिया
आगे जब जब बढ़ना था तुझे
तूने पीछे को मुंह मोड़ लिया
मैं बंजारा इन गलियों का
दिन रात मेरे अब बंजर हैं
कैसे देखूं ना दिखाई दे
अब धुंधले धुंधले मंजर हैं
कहीं जाने का भी मन ना है
हर हाथ मैं अब जो खंजर हैं
पर जिसके सीने में दिल ना हो
उसको तुम क्या मारोगे खंजर
मेरी नजरें हैं गिरी हुई
मुझको क्या दिखलाना मंजर?
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