शाम की नम हवा जब
रूह की दहलीज़ पर आहिस्ता दस्तक देती है,
तो ख़्यालों के दीये
यादों के ताक़ में
ख़ुद-ब-ख़ुद रौशन हो उठते हैं।
कुछ अधजले ख़्वाब
मख़मली अंधेरों में
सिसकियाँ लेते हैं,
और कुछ ताज़ा अरमान
उम्मीद की चादर ओढ़े
सुबह का इंतेज़ार करते हैं।
दिल की गलियों में
अल्फ़ाज़ नंगे पाँव चलते हैं,
हर मोड़ पर
कोई अफ़साना
ख़ुद से नज़रें मिलाकर
चुपचाप गुज़र जाता है।
यह ज़िंदगी
कभी महफ़िल की तरह
शोर-ओ-गुल से भरी,
तो कभी वीरान मकान-सी
ख़ामोशी में डूबी हुई,
जहाँ हर दीवार
बीते लम्हों की
इबारत सँभाले खड़ी है।
हमने चाहा था
कि मोहब्बत को
इबादत की शक्ल दें,
मगर वक़्त की सियाही ने
हर सफ़े पर
जुदाई की तहरीर लिख दी।
फिर भी
दिल ने हार नहीं मानी,
क्योंकि टूटने के बाद भी
आईने का हुनर
रौशनी लौटाना होता है।
आँसुओं की बारिश में
जब सब कुछ भीग जाता है,
तब सब्र की मिट्टी से
हौसलों का पौधा
आहिस्ता-आहिस्ता उगता है।
रास्ते थकाते हैं,
मंज़िलें आज़माती हैं,
मगर चलना ही
इंसान की पहचान है,
ठहर जाना तो
सिर्फ़ साए का मुक़द्दर है।
इसलिए
ख़ामोशी से दोस्ती रखो,
दर्द से बातचीत करो,
और यक़ीन की क़लम से
अपने हर दिन को
नई दास्तान बना दो—
क्योंकि
ज़िंदगी
लिखे जाने से नहीं,
जिए जाने से
मुकम्मल होती है।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







