शीर्षक: सब एक तरफ..
यूं दरिया दिली सभी की एक तरफ,
पर उसका रूठ जाना है एक तरफ l
उम्र भर साथ हैं यूं दो घड़ी के नहीं,
उसकी भूल चूक सब हैं एक तरफ।
मंजि़ल जब दे रही हो अपना पता,
दूर है या लबे बाम सब एक तरफ़ l
मंदिर-सा पसरा रहा घर मेॅ सन्नाटा,
बाहर का शोर शराबा है एक तरफ।
सच जिसको बोलना था बोल दिया,
अब उसकी नाराज़गी है एक तरफ।
चेहरा पर चेहरा कैसे बदल लेता है,
उसकी अदाकारियाँ सब एक तरफ।
लफ़्ज़ होठों पे सजते रहे मीठे-मीठे,
अंदर झाँक रही बेचैनी है एक तरफ।
हर कदम उसको संभलने को कहूं,
उसकी अठखेलियाँ सब एक तरफ।
जो भी मिला उससे पशेमां ना हुआ,
उसकी बदनीयतें सब हैं एक तरफ l
दौर-ए-मुंसिफ़ी में ज़रूरी मगर ये हो,
गलत है तो है बाकी सब एक तरफ़ ।
जबसे पढ़ने लगा हूँ ये चेहरा 'विजय',
पढ़ना लिखना किताबें हैं एक तरफ l
विजय प्रकाश श्रीवास्तव (c)

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




