उमर बढ़ गई जवानी जाने लगी
धीरे धीरे अब बुढ़ापा आने लगी
हर काम बिगड़ते कुछ भी बनते नहीं
आंख देखते नहीं कान भी सुनते नहीं
पांव और घुटने चलने में आगे को बढ़ते नहीं
दोनों हाथ कांपने लगे वे भी तगड़े लगते नहीं
मुंह में कोई स्वाद आता नहीं नाक भी ढंग से सूंघता नहीं
इस ढलती उमर में कुछ अच्छा लगता नहीं
खाना खाओ तो पेट में पचता नहीं
कभी डायरिया कभी लूज मोशन होता
ये देख कर दिल भी बहुत रोता
ये बुढ़ापा भी है बहुत बेदर्दी
कभी जुखाम खांसी कभी होती सर्दी
हर कुछ भूलने की आदत हो गई किसी चीज पर ध्यान नहीं
शरीर के सभी इंद्रिय कमजोर बिलकुल भी जान नहीं
ये वृद्ध अवस्था तो जरा सी भी भाती नहीं
करें तो क्या करें ? मौत भी आती नहीं
करें तो क्या करें ? मौत भी आती नहीं.......
----नेत्र प्रसाद गौतम