शाम होती जैसे ही दिल तेजी से करवटें लेता है,
तेरे बिना अब ये, सिसक - सिसक कर रोता है।
यकीं होता नहीं कि सदा के लिए तन्हा हो गया,
बरसों बाद तन्हाई मिटी थी अब तबाह हो गया है।
हूॅं इस जहां में मगर वजूद नहीं,ज़िंदा लाश बनी हूॅं,
ज़िस्म है,है इसमें एक दिल भी मगर बस जी रही हूॅं।
तू आयेगा फिर ज़िंदगी में, तन्हाई फिर से दूर होगी,
एक यही ख़्वाब नया मैं मन ही मन फिर बुन रही हूॅं।
तुझसे पहले ज़िस्म में जान थी पर बहुत कम थी,
तेरे जाने के बाद तो अब वो कम भी कहाॅं बची है।
अब ना कोई तलाश है ना ख़यालों में तेरे सिवा कुछ,
बस दर-दर भटक काटी जा रही,जो बेजान ज़िंदगी है।
💦रीना कुमारी प्रजापत 💦
सर्वाधिकार अधीन है


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







