बहुत कुछ मिला, मगर उम्मीद से कम था..
जो ख़्वाब आया, वो मेरी नींद से कम था..।
हम बाजारों के रंग ढंग, न सीख सके कभी..
हर चीज़ का दाम, हमारी ख़रीद से कम था..।
वो एहसानो का जिक्र, बार–बार करता रहा..
तभी वो नज़र में मेरी, कुछ मुफीद से कम था..।
मेरी वफ़ा की आजमाईश, तो सरे–राह हुई थी..
मगर जो गवाह मिला, वो चश्मदीद से कम था..।
उनकी मुहब्बत के, किस्सों की किताब में भी..
खुदा ने बहुत लिखा, मगर तम्हीद से कम था..।
पवन कुमार "क्षितिज"