कविता - ये क्या कर रही हो....?
किस बात से डर रही हो
अरे तुम ये क्या कर रही हो ?
मैं तुम्हारे लिए मर रहा
तुम उसके लिए मर रही हो
हे प्रिय तुम बहुत कपटी हो
पहले मेरे साथ अब उससे चिपटी हो
आज तुम्हारा वजूद मर गया
तुम्हारे दिमाग में गोबर तो नहीं भर गया ?
तुम उसके लिए संभर रही हो
अरे तुम ये क्या कर रही हो ?
मैं तुम्हारे लिए मर रहा
तुम उसके लिए मर रही हो
याद है कुछ साल पहले मुझ पर मरती थी
प्यार तुम मुझ को कितना करती थी
वह दिन भूल गई तुमने मुझे आलिंगन में लिया था
मैंने भी कुछ तुम से ऐसा ही किया था
अब क्यों हमारे प्यार में जहर भर रही हो
अरे ये तुम क्या कर रही हो...?
मैं तुम्हारे लिए मर रहा
तुम उसके लिए मर रही हो
पहले - पहले साथ साथ चलती रही
तुम ही हो मेरे दिल की धडकन बोलती रही
उस बखत आंखों में आंखे डाल बात किया
तुम ने ही आज मुझे विश्वासघात किया
न जाने क्यों मेरे से मुकर रही हो
अरे तुम ये क्या कर रही हो ?
मैं तुम्हारे लिए मर रहा
तुम उसके लिए मर रही हो
मेरे गली में आना भी छोड़ दिया
बुरी तरह से मेरा दिल तोड़ दिया
अब तो उसी से तुम्हारा पाला पड़ा है
तुम्हारे नजर में मुझ से वही बड़ा है
हर बखत उसी के गली से गुजर रही हो
अरे तुम ये क्या कर रही हो ?
मैं तुम्हारे लिए मर रहा
तुम उसके लिए मर रही हो
तुम उसके लिए मर रही हो......