कमाल है ना — अपने ही लोग निकले ग़द्दार,
चेहरे भले सीधे, पर सीने में ज़हर अपार।
जो खाते थे यहीं का नमक,
अब उनके इरादे निकले खालिस छल और दमक।
भीड़ में रहते थे बनकर शरीफ़,
पर दिल में छुपा रखा था खंजर तीव्र।
कभी बोलते थे “जय हिंद” की बात,
अब छुपे हैं दुश्मन की चालों के साथ,
अपनों के ही घर कर रहे हैं घात।
ना कोई वर्दी, ना कोई ओहदा,
बस आम से थे, पर काम निकले धोखा।
जिस मिट्टी ने जीवन दिया,
उसी से फरेब का रिश्ता किया।
शहीदों की कुर्बानी को रौंद दिया,
अपने ही देश को जला दिया।
चंद टुकड़ों में ईमान गिरवी रख आए,
पाकिस्तान के नक्शे पे वतन को झुकाए।
पर अब न पर्दा बचा है, न बहाना,
हर गद्दार का चेहरा सामने आना।
ये धरती माँ सब देख रही है,
और न्याय की आँधी अब चल पड़ी है।
अब देश बहेगा नहीं नफ़रत के रंग में,
जवाब मिलेगा हर गद्दार को ढंग से।
जो मिट्टी से बेवफ़ाई करेगा,
वो खुद भी इतिहास में मिट जाएगा।
"देश से जो दगा करेगा,
इतिहास उसे माफ़ न करेगा।"