ये धरती ह कहत हे आगास ले,
ये पुरवाई ह कहत हे सुबास ले,
तै मोर आँखी गोरी मैं तोर सपना ।
बाँध के प्रेम बँधना,
आजा तै मोर अँगना,
बन के मोर सजनी, मैं तोर सजना,
ये पानी ह कहत हे प्यास ले,
तै मोर आँखी गोरी मैं तोर सपना ।
तै बसे हस मोर साँस म,
तोर पाती हवे मोर पास म,
हाँसी छिपे हे जैसे उदास म,
ये भोर ह कहत हे उजास ले,
तै मोर आँखी गोरी मैं तोर सपना ।
बैठे अकेला तोला ही गुनत हो,
मया के गीत ल सुनत हो,
तोर बर नवा साज ल बुनत हो,
ये आँखी ह कहत हे आभास ले,
तै मोर आँखी गोरी मैं तोर सपना ।
ये धरती ह कहत हे आगास ले,
ये पुरवाई ह कहत हे सुबास ले,
तै मोर आँखी गोरी मैं तोर सपना ।
🖊️सुभाष कुमार यादव