सृष्टि को निहार कर निखार से भर दे।
उसी के सहारे मन को प्यार से भर दे।।
हिलते हुए लब का आसरा मिल जाए।
चिन्गारी अगर फूटे तो प्यार से भर दे।।
सावन का महीना बादल का छा जाना।
एहसास अगर जागे तो प्यार से भर दे।।
मचलती हुई नदी की जब धार तेज हो।
बहाकर तुझको 'उपदेश' प्यार से भर दे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद