कविता : मजबूरी....
मजबूरी आदमी को
घिसाता है
मजबूरी ही आदमी को
पीसाता है
मजबूरी ही आदमी को
सुखाता है
मजबूरी ही आदमी को
झुकाता है
मजबूरी आदमी को
क्या क्या नहीं करता है
वो तो आदमी को बहुत
नीचे तक गिराता है
वो तो आदमी को बहुत
नीचे तक गिराता है.......
netra prasad gautam