इसलिए इस समां में जादू नहीं है,
ख़त तो मिले हैं बहुत पर ग़म ही नहीं है,
इसलिए इस समां में.....!!
कागज खोलकर में पढ़ता नहीं हूं...,
आँखों में क़ातिल है जगता नहीं हूं,
इसलिए इस समां में ,
बूंदों में सारी दुनिया बसी है,
प्यासें की उम्मीद ही यही है,
इसलिए इस समां में।।
- ललित दाधीच।।