कविता : जहर की पुड़िया.... ( 2 )
बेशक प्रिय मेरे घर पर
खाना खाने को नहीं है
देखो प्रिय ये बात मेरी
बिलकुल ही सही है
मगर तुम्हारे लिए ये दुनिया
में कुछ भी कर सकता हूं
आजमा कर देख लो जहर की
पुड़िया खा कर मर सकता हूं
इतना ही नहीं तुम कहो तो
आसमान से चांद तारे लाऊं
तुम कहो तो एक बड़ी
दरिया में डूब मैं मर जाऊं
तुम कहो तो एक बड़ी
दरिया में डूब मैं मर जाऊं.......
netra prasad gautam