ज़िंदगी को बुना है हाथों से,
हम भी बारीकियां समझते हैं।
खुद से बे'वजह रूठ जाते हैं,
ज़िंदगी कब उदास करती है ।
हर एक सांस की क़ीमत चुकाई है हमने ,
ज़िदगी हमने कहां तेरा उधार रक्खा है।
ख़्वाब तेरा, तेरा ख़्याल लिए,
ज़िंदगी यूं भी हम गुज़ारेगे ।
मायूस इस कदर गमे हालात ने किया,
यादों में ज़िंदगी को सिमटा के रख दिया।
ज़िंदगी की चाहत में भूल ही न जाना तुम ।
ज़िंदगी के हिस्से में मौत भी तो आती है ।
आएगी जब तलक समझ में कुछ,
ज़िदगी मायने खो चुकी होगी ।
ज़िंदगी वो तजुर्बा देती है,
जो किताबें हमें नहीं ।
तुम से मिलने का वायदा कर लें,
ज़िंदगी इतनी भी तवील नहीं ।
देती है सबक ऐसे कोई फरामोश नहीं होता,
ज़िंदगी से बड़ा कोई भी उस्ताद नहीं होता ।
जैसे भी दे सबक सीखेंगे आज भी ,
हम आज भी तेरे मुकाबिल है ज़िंदगी ।
ज़ीस्त मेरी सुकून पा जाती,
ठहर जाता जो दर्द सीने में ।
----डाॅ फौज़िया नसीम शाद