कविता : हाए हाए....
न आदमी मर्जी से जन्म लेता
न आदमी मर्जी से मरता
फिर जब तक जीता क्यों
आदमी हाए हाए करता ?
फिर जब तक जीता क्यों
आदमी हाए हाए करता.......?
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
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आदमी हाए हाए करता.......?