कविता - बईमान
कैसे हाेगी नदीयाें में नईय्या पार ?
जब है यहाँ भष्टचार
जाे है बना अाज प्रधान
वही हाेता जा रहा बैमान
सेवा देने के बदले कुर्सी में बैठ कर
बने तुच्छ इमानदारी से हट कर
कैसे बने विकास का पूर्व अाधार ?
जब है यहाँ भष्टचार
धर्म करम नैतिकता काे छोड़े
खुद बने दूसराें का दिल तोड़े
न काेई अच्छा कार्य करे
केवल पेट अपना भरे
कैसे हाेगी गरीबाें की सुधार ?
जब है यहाँ भष्टचार
चाराे अाेर अवैध लूट हाेरहा
ये देख पीडित अाज राे रहा
जिधर देखाे उधर है बुरा हाल
हाेगी कब तक ऐसी ये चाल ?
कैसे हाे यहाँ उन्नति की बहार ?
जब है यहाँ भष्टचार
सत बिचार दूर बैमान साथ हाे गई
रिस्वत लेना अाज अाम बात हाे गई
नेक साेच नदी में ही बह गया
साेचाे जरा अब क्या रह गया ?
जब हाेगी यहाँ सही ब्यभार
तभी मिटेगी भष्टचार
तभी मिटेगी भष्टचार.......