मैंने
ना उसे माँगा —
ना दुआ में, ना ख्वाब में,
सिर्फ़
उसके होने की आहट को
अपने वजूद में गूँजने दिया।
मैंने
हर शून्य को
उसकी मौन आँखों से भरने की कोशिश की,
पर वो —
हर बार ख़ुदा बनकर सामने आया,
और फिर
धुंध की तरह ग़ायब हो गया।
मैंने
कभी उसे “प्रेम” नहीं कहा,
पर वो हर बार
मेरे इन्कार से निकलकर
मेरी कविता में उतर आया।
अब ना मैं सवाल करता हूँ,
ना इंतज़ार करता हूँ —
बस
एक खाली दीवार की तरह
हर शाम उसका नाम ओढ़कर
बैठ जाता हूँ।
वो जब चाहे
मेरे लफ़्ज़ों में उतर आता है,
जब चाहे
मेरी सांसों को उड़ा देता है —
और मैं?
मैं अब जान गया हूँ,
कि इश्क़ में
इश्क़ से भी ऊपर होती है
“उसकी मर्ज़ी।”
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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