(कविता ) (अादमी का बिचार )
अादमी का है ये कितना तुच्छ बिचार
साेचता मेरा ही हाे जीत बांकी सब का हाे हार
हर बखत रहूं अागे न काेई खिंचे
हमेसा सबके सब रहे मेरे पिछे
मैं शिखर में मैं ही बनूं सफल
हर इंसा रहे यहाँ बिफल
यही साेचता हर क्षण बातें बेकार
अादमी का है ये कितना तुच्छ बिचार
मुझे हर काेई माने पन्चायत हाे या सभा
मेरा ही हाे यहाँ चाराें अाेर दब-दबा
छाेड कर सबकाे पहुंचूं पद पर उंचे
मेरे से बांकी सबके सब रहे निचे
मेरा ही करे सब लाेग जय जय कार
अादमी का है ये कितना तुच्छ बिचार
हर काेई सुनता रहे मेरा भाषण
चले सालाें-साल अपना मेरा शासन
ईधर-उधर बजे मेरा बाजा
यहाँ का अाैर नहीं मैं ही बनूं राजा
सभी करे मेरा अादर अाैर सत्कार
अादमी का है ये कितना तुच्छ बिचार
मैं ही खाउं मैं ही माैज उडाउं
मैं ही नाचूं मैं ही यहाँ गाउँ
अाैर लाेग जाे करना है करे
क्या लेना सबके सब या भूखे मरे
लग कर अाग या जले ये संसार
अादमी का है ये कितना तुच्छ बिचार
अादमी का है ये कितना तुच्छ बिचार .......

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




