- कवि राजेश - कुण्डलियां छंद
राधा मोहन से कहे,रंग न डालो श्याम।
चटक रंग ब्रज में मुझे,कर देंगे बदनाम।।
कर देंगे बदनाम,सखी मुझसे पूछेगी।
कहाँ हुआ ये हाल,पोल सखियाँ खोलेगी।।
ले होली के रंग,निशाना तुमने साधा।
पिचकारी ये छोड़ ,रंग दी प्यारी राधा।।
अंग अंग भींगे सभी,चटक रंग के संग।
सांवरिया के संग में,खेलें मिलकर रंग।।
खेलें मिलकर रंग,ढोल डफली बाजे।
हाथों में ले चंग,खड़े सबके दरवाजे।
कह कविवर राजेश,पी लो अब जमकर भंग।
खेल अबीर गुलाल,महक उठे हैं अंग।।
होली लाती एकता,मन में भरे उमंग।
सदा साथ ही खेलते,गोप गोपियां संग।।
गोप गोपियां संग,साथ रहते बनवारी।
सुनते प्रभू पुकार,सदा करते रखवारी।।
कह कविवर राजेश,बनाएं घर घर टोली।
आओ खेलें सखा, प्रेमरंग संग होली।।
पिचकारी के रंग से,हुई धरा भी लाल।
घर घर होली खेलते,करते खूब धमाल।।
करते खूब धमाल,और रसिया भी गाते।
होता रोज कमाल,भंग मिलकर पी जाते।।
कह कविवर राजेश,बात ये सबसे प्यारी।
बरसाना में खेल,चला गौरी पिचकारी।।
-राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"
कवि,साहित्यकार
श्रीराम कॉलोनी,भवानीमंडी
जिला - झालावाड राजस्थान
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