आज फिर वो आंखे उनीदी दिखी
लगता खाने की थाली भी मंहगी लगी l
कितनी सूनी कलाई यहाँ हैं दिखी ,
मानो दिल्ली दिलो पे है भारी पड़ी l
छठ का सूरज धुयें में फ़िर छिप गया
रात यन्त्रो से दीपक सटे जो रहे l
आज फिर वो आंखे .....
चीर द्रौपदि का लगता है फिर जल गया ,
रास्ते में मसाले जलायी गई l
छल गई आज बेबस गुहारे किसे ,
छलिया मोहन न जाने कहाँ छिप गया l
बिध गई एक नारी की करुणा सहज ,
पर न जाने कलेजा वो क्यों न बिधा l.
आज फिर वो आंखे ...
वीरता की कथाएँ सुनाई गईं ,
राग करुणा पे आंसू न मुझको दिखे l
प्रेम गानो पे झूमा शहर रात भर ,
पीर शब्दो पे महफ़िल बिरानी हुई l
देख पीड़ा ये आंखे बरस जो पड़े ,
आह! सुन्दर प्रकाश वो कहानी लगे l
आज फिर वो आँखे..
तेजप्रकाश पाण्डेय सतना मध्य प्रदेश लिखित🙏🙏