अगर तुम मेरे साथ रह के पछताते हो — तो रहने दो,
मैं ख़ुद से टूटी हूँ पहले ही, अब तुमसे क्या कहना दो।
तुम अपने फ़ैसले में जो ठहरे हो — ठहरे रहो,
मैं भीगूँगी अब सिर्फ़ बारिश में, अश्कों को बहने दो।
तुम्हारी हर रात उदासी थी, हर सुबह एक शिकवा,
मैंने तो रिश्तों को पूजा था — अब उन्हें जलने दो।
मैं औरत हूँ — कोई समझौता नहीं, एक संपूर्ण कथा,
जिसे अधूरी समझा गया, वो कहानी बदलने दो।
मैंने माँगा था प्रेम — समर्पण नहीं,
तुम चाहो गुलामी — तो किसी और का कहना दो।
तुम्हारे हर “क्यों”, हर “क्या”, हर “कभी नहीं” में मैं जीती रही,
अब जो मेरी आत्मा रोती हो — उसे भी हँसने दो।
मैंने साँस-साँस में तुम्हें ओढ़ा था, जैसे कोई व्रत,
पर अगर प्रेम तुम्हारे लिए बेड़ियाँ थीं — तो वो टूटने दो।
तुम साथ थे — ये भ्रम था, या मेरी ही सज़ा?
अब उस साथ के हर पल को, धूप में सूखने दो।
मेरे भीतर की ‘शारदा’ अब जाग चुकी है,
जो तुमसे माँगा था, अब उसे ख़ुद से ही सहने दो।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




