👉 बह्र - बहर-ए-रमल मुसम्मन महज़ूफ़
👉 वज़्न - 2122 2122 2122 212
👉 अरकान - फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
जिस बशर को वक़्त-ए-मुश्किल हँस के जीना आ गया
उसका फ़िर हर हाल साहिल पे सफ़ीना आ गया
जिंदगी में वो कभी तन्हा न ख़ुद को पाएगा
जिसको सबके सँग चलने का करीना आ गया
दर्द भी उस आदमी को क्या भला तड़पाएगा
जिसको अपना ख़ुद-ब-ख़ुद हर ज़ख्म सीना आ गया
तुमने ख़ुद को आज महकाया है महँगे इत्र से
मुझको महकाने मशक़्क़त से पसीना आ गया
जाम को हमनें लगाया फ़िर न होंठों से कभी
जबसे हमको आप की आँखों से पीना आ गया
इस जहाँ में सच कहूँ मिलकर लगा यूँ आप से
जैसे पत्थर में नज़र कोई नगीना आ गया
माँ ने अपना हाथ क्या फ़ेरा मिरे सर प्यार से
"शाद" ख़ाली हाथों में मानो दफ़ीना आ गया
* सफ़ीना - कश्ती , नाव
* करीना - तरीका, तरक़ीब
* दफ़ीना - खज़ाना
©विवेक'शाद'


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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