जो भी बनी हूँ आज अपनी मेहनत से।
खिलवाड खूब किया अपनी सेहत से।।
अल्हड जवानी गुजर गई देर में जानी।
पछतावा नही खुश यादो के थपेडो से।।
आँसू भी आये कई बार पोंछती रही।
जरूरत पर छाया पाई पुराने पेडो से।।
अब अकेली जरूर हूँ पर तन्हाई नही।
काम चला लेती हूँ 'उपदेश' के बेडो से।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद