विडम्बना है जीवन की ये,
हँसी में भी आँसू छुप जाते हैं,
जो सबसे पास हैं दिल के,
अक्सर वही दूर हो जाते हैं |
सत्य अक्सर चुप रहता है,
झूठ शोर मचाता है,
इंसानियत को भूल के अब,
हैवान ही जीत जाता है |
विडम्बना ये भी कम नहीं,
भूख से बच्चा रोता है,
माँ उसको वो देती है
जो पैसेवाला छोड़ता है |
जीवन की इस उलझन में,
सच-झूठ का फर्क मिट गया,
जो होना चाहिए था सरल,
विडम्बना बनकर मुश्किल हो गया |
शिल्पी चड्ढा