"ग़ज़ल"
अपनी मर्ज़ी से दुनिया में आता नहीं कोई!
अपनी ख़ुशी से दुनिया से जाता नहीं कोई!!
ऐसे भी अपने आप को मिटाता नहीं कोई!
ख़ुद अपनी चिता में आग लगाता नहीं कोई!!
शायद मेरी तन्हाई ही रोक देती है सब को!
मेरे क़रीब इसीलिए आता नहीं कोई!!
ख़्वाबों को अपनी पलकों पे सजाती है दुनिया!
यूॅं ख़्वाबों को ऑंसुओं में बहाता नहीं कोई!!
जो यारों के यार थे वो भी शरमा के रह गए!
दुश्मनों को यूॅं गले से लगाता नहीं कोई!!
उजाले का काम है कि वो अन्धेरे मिटाए!
ज़ुल्मत से लड़ती शम्अ को बुझाता नहीं कोई!
ज़ालिम का ज़ुल्म और भी बढ़ जाता है 'परवेज़'!
जब ज़ालिम के सामने सर उठाता नहीं कोई!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*ज़ुल्मत = अन्धेरा या अन्धकार या तारीकी (darkness); *सर उठाना = विरोध करना (oppose).

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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