वो बात कुछ ज़ियादा कर गया था
न जाने कैसा - कैसा वादा कर गया था
आज मुक़म्मल हुआ खुद के रूबरू होकर
वो शख्स तो मुझे आधा कर गया था
जेहन से खेल गया था हर लफ्ज उसका
वो याद करने को मुझे आमादा कर गया था
मैंने खुद को लिखा था जिस पन्ने पर
उसे भिगो कर वो सादा कर गया था
मैं भी अड़ियल हूँ इत्तेफ़ाक से अब भी
वैसे वक्त ज़्यादती ज्यादा कर गया था
मैं, मुझ तक पहुँच गया हूँ ये काफ़ी है अब
मैं खुद के रूबरू कितना दरवाजा कर गया था
मुझे इल्म अब हुआ के तब कुछ इल्म न था
उससे न जाने क्या - क्या तकाजा कर गया था
मुझे, मुझतक पहुंचाने को आखिर मैं ही गया
फिर खामखा उसको इशारा कर गया था
- सिद्धार्थ गोरखपुरी