किसी के अश्क का कतरा शराब लगता है
रात की ओस में भीगा गुलाब लगता है
कोई समझेगा कहाँ जहाने इश्क का आलम
अंधेरी रात में दिल का चराग जलता है
नहीं लपट है धुआं है नहीं कोई चिंगारी पर
बुझा हुआ ये शोला भी आग लगता है
तमाम उम्र गुजरी है दास जिनकी उल्फत में
लबों पे ठहरा लफ्ज़ भी मुकाम लगता है
कहां से ढूंढ के अब लायेंगे हम नया रहबर
हर सवेरे आकर सूरज भी शाम ढलता है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




