मुर्गी कितनी प्यारी है
देखने में बडी अच्छी न्यारी है
पर मुर्गी पीडित और लाचार है
उसके साथ मनुस्य का गलत ब्यभार है
हे मनुस्य कभी मुर्गी के अन्डे उबाल खाता
कभी उसके अन्डे का आमलेट बनाता
फिर उसे भी चबाता
अरे मनुस्य तुझे शर्म नहीं आता ते
री काेई पाटी हाे या शादी
मुर्गी का ही है बरबादी
यदि मुर्गी नहीं खाता था
तेरा क्या जाता था
जब तुझे नाेकरी मिलता
मुर्गी के ही गर्धन पर छूरी चलता
जब तेरा ओहदा बढता
मुर्गी काे ही कटना पडता
हे मनुस्य तू पापी बडा है
मुर्गी के पीछे क्याें तू पडा है
मुर्गी के पीछे क्याें तू पडा है......
----नेत्र प्रसाद गौतम

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




