न मुस्कुराहट का ठिकाना है और न आंखें झलकती हैं,
अब न मुस्कुराहट का ठिकाना है और न आंखें झलकती हैं,
न तो इश्क का बहाना है और न ही गुलों की गलियां महकती हैं
महकती हैं पर अब हवाएं, गलियों की तरफ जब जाता हूं,
गलियां तो कब की तबाह हो गईं जनाब तूफान में,
जो तबाह नही हुए उन गुलों को देखने जाता हूं।