तुम्हारी नजर से कैसे बचें वो ताड़ लेती।
सामने से गुज़रती लचक पहचान लेती।।
शरीर की संरचना बनाई गई ऐसी मेरी।
जवानी झलकती हर अंग से बाते करती।।
तुम्हारी निगाह में समाई काम परछाईं।
पीठ दिख जाने भर से भी साँसे भरती।।
सब कुछ छुपाने से भी कुछ न बदलेगा।
मन में वासनाओं की गहरी लहर उठती।।
चैन की जिन्दगी जीने के लिए मोहब्बत।
जरूरी मुझसे 'उपदेश' मैं तुझसे करती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद