कलियुग का महाभारत बंद हो,
हर बात पर अब संग्राम बंद हो।
ना रथ, ना तीर, ना धनुष रहे,
अब रक्त से यह इल्ज़ाम बंद हो।
ना कृष्ण हैं, ना सारथी बचे,
हर चाल में अब छल-कपट बचे।
ना धर्म-युद्ध, ना नीति-घोष,
बस स्वार्थ की हर बात में जहर बचे।
अब अर्जुन भी फेसबुक पे है,
और गांडीव इंस्टा पोस्ट पे है।
धैर्य, करुणा, विवेक के नाम,
अब ट्रोलर के व्यंग्य विलोप पे हैं।
द्रोण यहाँ अब शिक्षा नहीं देते,
बल्कि नफ़रत के तीर संजोते हैं।
कर्ण को जाति में बाँट दिया,
और भीष्म अब मौन ही रोते हैं।
हर द्वारका अब बिकने लगी है,
हर कुरुक्षेत्र में भीड़ ठगी है।
धर्म को हमने अपमान दिया,
और वेदना को सत्ताभाषा ठनी है।
अब धर्म नहीं, बस वाद चले,
अब सत्य नहीं, संवाद जले।
अब भीड़ ही नीति तय करे,
और झूठ पर ही तिरंगा चले।
तो बोलो मित्रो! युद्ध क्यों है?
जब हर मन में ही शुद्ध क्यों है?
अब बंद करो यह रण का खेल,
जब विवेक हारा, बुद्ध क्यों है?
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कलियुग का महाभारत अब रुके,
हर कोना हृदय से फिर खुले।
ना कोई हार, ना कोई जय,
बस मनुज-भाव से धरती फिरे।