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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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कविता की खुँटी

                    

कविता - हे ऊपर वाले....

(कविता) (हे उपर वाले)

कितनी अच्छी है बकरे कि जिंदगानी
वह घाँस खाता अाैर पीता पानी

बकरे में है बडा कमाल
न राेटी शब्जी न चाहिए दाल

घांसपानी से ही गुजारा हाेता
मजे से बैठता चैन से साेता

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा क्या जाता?

चाैरासी ब्यन्जन मैं अाज खा रहा
फिर भी बेचैन समझ नहीं अा रहा

पूर्ब जन्म में क्या थी मेरी खता
न खबर है न मुझे पता

बकरा कितना सुखी
मैं कितना दुखी

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा क्या जाता?

है बडा मस्त बकरे का हाल
न उसे जाेडी का सवाल

न बच्चाें कि फिकर
अच्छा ही अच्छा चाहे देेखाे जिधर

बकरे का है अलग ही सान
न कभी हैरान न कभी परेेशान

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा क्या जाता?

मेरा ताे कभी बिबी से कच कच
कभी बच्चाें से खच पच

कभी किसी कि नुमाईस
कभी किसी कि फर्माईस

बहुत तंग अाया
बहुत हन्डर खाया

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमैं तेरा क्या जाता?

बकरे अापस में न कभी लडते
शान्त बैठ न कभी झगडते

कितना है अच्छा उनका स्वाेभाव
उनकी तूलना में है अादमी खराब

उनकाे देख बडा अाश्चर्य हाेता
मैं अादमी न ढंग से बैठता न फिर साेता

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा क्या जाता?

कभी चिन्ता बच्चे कब पढेंगे
कब अागे बढेंगे

फिर हाेगी कब उनकी शादी
इसीमें गई मेरी उमर अाधी

बहुत बुरा है हाल
पक गए शिर के भी बाल

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा क्या जाता?

बकरे काे बनाया माैन माैजी जैसा
न उसे कपडा न चाहिए पैसा

उसकी ताे बहार ही बहार है
उसके शर न खर्च न काेही ब्यभार है

मार ताे अादमी पर ही मार है
इसी लिए अादमी का जीवन बेकार है

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा क्या जाता?

कभी किसीकाे पैसे देना
कभी किसी से कर्जा लेना

हर बखत चिन्ता हर बखत फिकर
हैरान हूं जाउं भी किधर

माैत नहीं अाया
मर भी नहीं पाया

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा क्या जाता?

बकरे काे भूख लगे म्यां म्यां करता
अादमी घाँस डालता वह पेट भरता

कभी अादमी उसे जंगल ले जाता
वहाँ भी बकरा चुन-चुन घाँस खाता

बगैर मसक्कत किए बकरा फिरी में खाए
अादमी सारा दिन दाैडे ढंग से खा भी न पाए

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा क्या जाता?

अादमी ही बकरे काे पालता अाैर काटता
पका कर मास उसका खाता अाैर चाटता

उसके वाद साम-सुम्य हाेता
न बकरा हंसता न बकरा राेता

अपनि ताे राेज राेज कि झन्झट
ताते फिर वही कनपट

हे उपर वाले अादमी के बजाए.......
मुझे बकरा बनाता
इसमें तेरा जाता?
इसमें तेरा क्या जाता?




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

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Shyam Kumar said

Waah....shriman ise padhkar to sach m lag rha ha ki insan na bnakar bkra bnaya hota bhagwan ne to jyda acha hota. Bahut sundar rachna

नेत्र प्रसाद गौतम replied

नमस्कार श्याम कुमार जी आप ने इस लेख को प्रशंसा करके मेरा हौसला बढ़ाया है आप का मैं बहुत आभारी हूं धन्यवाद।

Komal Raju said

😂😂 बहुत बढ़िया इसे कहते हैं किसी से जीवन की तुलना करना इतनी सुंदर अंदाज में

वेदव्यास मिश्र said

अजीब सी कशिश है इसमें व्यंग्य की 👌

नेत्र प्रसाद गौतम replied

नमस्कार वेदव्यास मिश्र जी प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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