कुछ चोट लगीं,
कुछ जख्म मिले,
कुछ आह सहीं,
कुछ राह चला,
कुछ दूर चला,
फिर भटक गया,
भटका ऐसा,
फिर मिला नहीं,
न राह मिली,
न खुद से मिला,
जिन्दा था भी,
या न था,
ऐसा भी कुछ,
एहसास न था,
मैं, मैं ही न था,
कुछ खास न था,
नजरें झुकीं तो,
फिर न उठीं,
कुछ परदे थे,
कुछ मन नहीं था,
कुछ पाना था,
साहस नहीं था,
जहाँ साहस था,
वहाँ तोडा गया,
जिन्हे मैंने चुना,
वो छोड़ गए,
जो मुझे चुने,
मैंने छोड़ दिए,
बस यही खता,
मैं करता रहा,
एक बार किया,
हर बार किया,
अब कुछ भी,
नहीं है हाथों में,
रहता हूँ तनहा,
जीवन में,
दिन में और रातों में।
-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)
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The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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