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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कुछ भी नहीं है हाथों में - अशोक कुमार पचौरी


कुछ चोट लगीं,
कुछ जख्म मिले,
कुछ आह सहीं,
कुछ राह चला,
कुछ दूर चला,
फिर भटक गया,
भटका ऐसा,
फिर मिला नहीं,
न राह मिली,
न खुद से मिला,
जिन्दा था भी,
या न था,
ऐसा भी कुछ,
एहसास न था,
मैं, मैं ही न था,
कुछ खास न था,
नजरें झुकीं तो,
फिर न उठीं,
कुछ परदे थे,
कुछ मन नहीं था,
कुछ पाना था,
साहस नहीं था,
जहाँ साहस था,
वहाँ तोडा गया,
जिन्हे मैंने चुना,
वो छोड़ गए,
जो मुझे चुने,
मैंने छोड़ दिए,
बस यही खता,
मैं करता रहा,
एक बार किया,
हर बार किया,
अब कुछ भी,
नहीं है हाथों में,
रहता हूँ तनहा,
जीवन में,
दिन में और रातों में।

-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)



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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

अल्का शर्मा said

बहुत खूबसूरत एवं मार्मिक रचना।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका सहृदय बहुत आभार

वेदव्यास मिश्र said

लयात्मक गीत ..इसे पढ़ते-पढ़ते रैप सांग की तरह गाने में बहुत मजा आया !! शानदार 👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपकी संगीत से रूचि जगजाहिर है श्रीमान - मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ कि आप जैसे मार्गदर्शक एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी मेरी छोटी मोटी रचना पर प्रयोग कर उसका आकलन एवं अवमूल्यन कर अनुग्रहित कर रहे हैं - सादर नमन वंदन श्रीमान जी

Lekhram Yadav said

सर जी इतना गजब मत कीजिए, आपके हाथों में अगर कुछ नहीं था तो आपने यह रचना कैसे लिख दी। आपके हाथ में कलम जैसी चीज थी तभी तीन उस स्थिति को शब्दों में ढ़ाल पाए।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

जी धन्यवाद यादव सर जी, कलम तो थी तभी लिख पाया

कमलकांत घिरी said

वाह वाह क्या बात है बहुत खूब, दिल छू लिया बेहतरीन रचना सर जी 🙌🙌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

कांत सर आपका बहुत बहुत आभार

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