अन्धकार में सोते सोते,
एक दिन अचानक उजाला हुआ,
वैसे ही जैसे,
अमावस की रात के बाद,
पूर्णिमा का आगमन हुआ हो,
ऐसे कैसे?
युहीं तो नहीं
कदापि नहीं
अंधियारी रात में,
जुगुनू के साथ में,
चींटियों की तरह अथक मेहनत कर,
चिड़ियों से घोसला बनाना सीखा
फिर वही सिलसिला,
शमा - परवाना ,
जलते भुझते,
कभी यहाँ कभी वहां
गिरते पड़ते
एक दिन अचानक
उठ खड़ा हुआ
चलने लगा, कदम लड़खड़ाए
लेकिन कितनी देर?
एक क्षण में दौड़ता हुआ नज़र आया,
अथक, निरंतर, आशान्वित,
तेज से भरा हुआ,
जोश से परिपूर्ण,
मंजिल को लक्ष्य बनाकर,
पहुँच गया शिखर पर
जहाँ चाँद अपनी चांदनी बिखेर रहा था,
वह पथिक!! खुश था
अपने कर्म से, अपने लक्ष्य की प्राप्ति से
और सबसे ज्यादा अपने उस निर्णय से
जिसने उसे अँधेरे में
जुगनू के साथ चलने के लिए प्रेरित किया!!
-अशोक कुमार पचौरी