एक दिन मैंने अपने भीतर उतर कर
अपने नाम की चिट्ठी खोली,
लिखा था—
“तू बस एक साया है
किसी और की तलाश में भटका हुआ।”
मैंने अपने स्पर्श को
दीवारों पर टटोला,
पर हर ईंट से
तेरा नाम रिसता था,
जैसे तू मेरी मिट्टी में मिला हो
और मैं—सिर्फ़ एक छाया हूँ
तेरे स्पर्श की।
मैंने अपने सपनों को
सूत की तरह उँगलियों पर लपेटा,
पर जब भी कोई रंग चुना,
धागा टूट गया।
शायद मैं रंग नहीं—
एक अधूरी प्रतीक्षा हूँ
किसी पूरी रचना के पहले की।
मैंने तुझसे नहीं पूछा था
जीवन का मतलब,
फिर भी तू हर उत्तर बनकर
मेरे मौन में उतर आया।
और मैं—
हर उत्तर को प्रश्न बना बैठा।
अब समझा हूँ—
मेरा होना
मुझमे तेरे न होने की गुज़ारिश थी।
अगर मैं नहीं होता, प्रभु…
तो तू होता—
हर नदी में, हर पुरुष की आँखों में,
हर शब्द की गहराई में,
हर अधूरी कविता की पूर्णता में।
क्योंकि तू ही तो है—
जो मुझे लिखते-लिखते
कभी-कभी खुद को मिटा देता है।
मैं हूँ तो सीमाएँ हैं,
मैं नहीं होता—
तो मैं तूँ अनंत होता।
-इक़बाल सिंह “राशा“
मानिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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