बार-बार ये झूठ भरोसे, गलत दे रहे जवाब।
बच्चों को क्या सिखलायेगें, भविष्य खराब कर रहे जनाब।
फर्जी है इनकी डिग्री, फर्जी करते काम।
हो जाए कुछ ऊपर की इनकम, बे मौसम खाएंआम।
अंकी, इंकी, डंकी लाल, हाजिरी लगा कहीं भी आते जाते।
सरकारी हैं, फिर भी प्राइवेट एक दुकान चलाते।
पहली बार हो रही है बहस, खुलकर यारों ऐ! विख्यात,
वरना यहां तो,फैसला लिखते बंद लिफाफों में।