"ग़ज़ल"
पूरे नहीं हुए मगर अरमान बहुत हैं!
इस दिल के धड़कने के सामान बहुत हैं!!
मर मर के जिए जाने पे मजबूर हैं जो!
इस दुनिया में हम जैसे इंसान बहुत हैं!!
बिखेर कर रख दे न मिरे वजूद के तिनके!
पोशीदा दिल-ए-ज़ार में तूफ़ान बहुत हैं!!
कितनों के बचे हैं ईमान मुसल्लम?
कहने को दुनिया में मुसलमान बहुत हैं!!
दर्द-ए-दिल चश्म-ए-तर आह-ओ-फ़ुग़ाॅं लब पर!
ऐ ज़िंदगी! मुझ पर तिरे एहसान बहुत हैं!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद