अमर उजाला के मेरे अल्फाज से एक और पुरानी रचना!
जिन्दगी कुछ इस तरह व्यवहार करती है
जैसे बिल्ली चूहे से खिलवाड़ करती है
चल पड़े तो वक्त ने पंजे अड़ा दिए
रुक गए तो रोशनी प्रतिवाद करती है
सुख समंदर में घुली बून्द की है खोज
दुख नदी के धार सी बरसात करती है
रेशा रेशा चाँदनी का पी लिया तो क्या
विष वमन तो प्यार की खैरात करती है
हर खिले चेहरे पे हंसी उधार की
आजकल मुस्कान खुद व्यापार करती है
रोजी रोटी कपडे मकान की खातिर
अब नई पीढ़ी नया अपराध करती है
जब हवा आई तो तिनका उड़ गया
आंधीयां दरखत अड़े बेकार करती है
आंसुओं की बाढ़ से गर्दिश कभी हटती नहीं
बस इरादे से खुशी फरियाद करती है
दास किस्मत की इबारत लिखता है खुदा
आदमी को चाहतें बरबाद करती है ी
शिव चरण दास