शब- ए- फ़ुर्क़त है और आलम- ए- तन्हाई है।
खुदाया अब तो हमारी जान पर बन आई है।।
वो कर रहे हैं लानत- मलामत हमारी लाश पर।
नहीं जानते मर कर भी हमें नींद नहीं आई है।।
निगाह-ए-मस्त साकी की कुछ यूं पड़ी हम पर।
लड़खड़ा रहे हैं अब तलक क्या शै पिलाई है।।
तिरी इक आह से दिल ए आशिक टूट जाएगा।
क़बूल कर मोहब्बत हमारी तुमसे आशनाई है।।
बहार जा चुकी ख़िज़ाॅं ही ख़िज़ाॅं है सब तरफ़।
कुदरत के खेल हैं ये या कुदरत की रानाई है।।
----ओम गोपाल