तसल्ली है कि बात फोन पर हो जाती।
मेरी आवाज सुनकर जानम खो जाती।।
मेरी हसरत कुलबुलाती रहती बेवजह।
कह न सका कभी वर्ना जान मर जाती।।
कभी देखने को मिले लाख सजदे करूँ।
ख्वाब में झांकती वो सूरत नजर आती।।
सहनशील होजाऊँ न तो और क्या करूँ।
मन की पढती 'उपदेश' शांति हो जाती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद