मिला क्या इन रिश्तों से कुछ भी नहीं
हम कांटों पे चलते रहे और वो देखर मुझे मुस्कुराते रहे।
वफ़ा थी ना थी कोई सच्चाई
ना थी दिल से किसी के लिए भलाई।
बस लोग यूहीं मुझे छलते रहे
और हम अपनी गलती कहें या अनाड़ीपन
अपने आप में हीं गलते रहे।
और देखकर लोग मुझे मुस्कुराते रहे।
दुनियां के मेले में हम थे अकेले और खुद को साकि संग घिरे समझते रहे।
जब आंख खुली तो तन्हाई थी
और हम यूहीं अकेले महफिलों में मचलते रहे।
लोगों को शायद हम पसंद हैं ये समझकर उनसे मिलते रहें पर था क्या पता की मुझे देख लोग मुझसे जलते रहे।
पर हम अनाड़ी होकर शुद्ध हैं तो ठीक हीं हैं
वरना लोग मिलावट कर के भी शुद्ध बनते रहे।
दूसरों को हीं नहीं बल्कि खुद को भी छलते
रहे ..
लोग खुद को भी छलते रहे...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




